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Thursday, March 23, 2017

जिन्दगी यूँ ही रेत सी फिसलती जा रही है आजकल...

जिन्दगी यूँ ही रेत सी फिसलती जा रही है आजकल...

 

वो पुरानी यादें, यूँही सिमटती जा रही है आजकल,
बस चंद लम्हों में, बिखरती जा रही है आजकल...

एक चिंगारी उठा लाये थे कभी अपनी ही बेसुधी में,
वही आग बन कर हमे जला रही है आजकल...

ये कदम तो पहले भी बहके है होश खो कर,
मगर, ये राहे खुद बहकती जा रही है आजकल...

अच्छे और बुरे, जिन्दगी में लोग कितने ही मिले,
धुंधली सी एक याद होती जा रही है आजकल...

जिस ज़मीं पर छोड़ आए थे निशाँ क़दमो के हम,
वो ज़मीं ही खिसकती जा राही हे आजकल...

याद शाम की कभी आना कोई हैरत नहीं मगर,
हर घड़ी उस शाम में ढ़लती जा रही है आजकल...

जिन्दगी के थे कई मकसद हमारे भी अशीम मगर,

जिन्दगी यूँ ही रेत सी फिसलती जा रही है आजकल... 

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