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Thursday, May 04, 2017

एक नया मेहमान

पंछी एक प्रेरणा 

एक पेड़ की डाली के कोने पर
मेहमान नया कोई आया था,
संघर्ष से सफलता पाने का
संदेश नया वो लाया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था।
बसंत के मौसम में बगिया में
हर ओर ही अंकुर फूट रहे थे,
नयन हमारे आनंदित हो
इस दृश्य का आनंद लूट रहे थे,
हर ओर ही हर्ष उल्लास सा था
हर ओर भरी हरियाली थी,
तभी अचानक नज़र पड़ी
वो पेड़ की डाली खाली थी,
कुछ सोच रहा था उस पर बैठा
ऊपर से पेड़ का साया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था।
सोच रहा था वो कैसे अब
घर को अपने बसाएगा,
सब से पहले तिनका-तिनका
उठा उठा कर लाएगा,
खोज-बीन में जुट गया था
तलाश हुई अब पूरी थी,
मुश्किल तो बस इतनी थी कि
पेड़ से थोड़ी दूरी थी,
पहला तिनका रखते ही अचानक
हवा के झोंके ने उड़ाया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था।
संशय था तब मन में आया
इससे ना हो पाएगा,
कहाँ सामना हवा का कर ये
नई मिसाल बनाएगा,
हुआ अचंभा दूजे पल ही
वो दूसरा तिनका ले आया,
उड़ गया उसको भी लेकर
जब हवा का झोंका फिर आया,
वक़्त ना जाने आज ये कैसा
इम्तिहान ले आया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था।
हिम्मत गज़ब की थी उसमें
अभी हार ना उसने मानी थी,
उसी डाल पर उसने अब
आशियाना बनाने की ठानी थी,
जाने उसने कब और कैसे
हवा को दे दी मार,
जल्दी-जल्दी लाकर रख दिए
उसने तिनके दो-चार,
काम शुरू कर उसने अब
अपना हौसला और बढ़ाया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था।
धीरे-धीरे संयम से उसने
अपने घर का निर्माण किया,
मेरी भी नजरों ने उसके
जज़्बे का सम्मान किया,
देखा मैंने दृढ़ निश्चय उसका
अपनी समस्या का उसने समाधान किया,
लक्ष्य प्राप्त कर उसने अपना
अपनी विजय का गान किया,
हार ना मानो, विजय है तुम्हारी
इस बात को उसने सिखाया था,
इक पंछी देखा था मैंने
मेरे मन को बहुत वो भाया था 


अपील :-
            


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